कटान के चलते अपने ही हाथों अपना आशियाना उजाड़ रहे ग्रामीण

करीब एक दर्जन ग्रामीणों की तीन सौ बीघा जमीन गंगा में समा चुकी
कंपिल, समृद्धि न्यूज। पिछले एक पखवारे से कम वर्षा होने और बैराजों से कम पानी छोड़े जाने से बाढग़्रस्त क्षेत्रों की हालत में थोड़ा बहुत सुधार होना शुरू हुआ था, लेकिन कटान शुरू होने से गाँवों में फिर संकट के बादल घिर आए है। कटान और बीमारी झेल रहे ग्रामीण एक बार फिर पानी बढऩे से मकान तोडक़र सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन करने लगे हैं।
रविवार की सुबह नदी का डिस्चार्ज 38740 हजार क्यूसेक रहा। गंगा नदी का घटता जलस्तर तलवार की धार की तरह कटान को अंजाम देता है। अपने इसी प्रकृति के मुताबिक गंगा नदी बांध के अंतिम किनारों पर बसे पथरामई, जटा, पुन्थर देहामाफी को अपने निशाने पर लिए हुए है। सर्वाधिक खतरा पथरामई पर मंडरा रहा है। नदी के कटान की गति को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यह गांव इस मानसून सत्र में इतिहास की विषय वस्तु बन जाएंगे। नदी का रौद्र रुप देख सहमे उक्त गांवों के ग्रामीण अपने ही हाथों अपना आशियाना उजाड़ दूर बसने के लिए पलायित हो रहे हैं, जबकि पक्के मकान भी तोड़ रहे हैं। प्रशासन द्वारा सुधि न लिए जाने से पलायित हो रहे ग्रामीणों में आक्रोश व्याप्त है। गंगा की धार से पथरामई गांव के अधिकांश ग्रामीण बेघर हो गए हैं। ग्रामीणों ने खेतों में पॉलीथिन व झोपडिय़ां डालकर आशियाना बना लिया है। गंगा की धार के करीब पहुंचते ही पथरामाई निवासी उधम सिंह, देव सिंह, म्यान सिंह, टीकाराम, सुखराम, दूधेराम ने मकान तोड़ लिया है, लेकिन घरेलू सामान रखने के लिए भूमि न होने से उन्होंने बल्लियों के सहारे छप्पर रखकर घरेलू सामान उस पर रख दिया है। बेघर ग्रामीण सडक़ों पर झोपडिय़ों व पॉलीथिन के सहारे गुजारा कर रहे हैं। करीब एक दर्जन से अधिक ग्रामीणों की तीन सौ बीघा जमीन गंगा की धार में समा चुकी है।

रोग फैलने से मरने लगे पशु

पथरामई गांव में बाढ़ का पानी कम होने से बीमारियों ने अपने पांव पसार लिए है। पशुओं में खुरपका, मुंहपका, गला घोंटू रोग फैलने लगे हैं। पथरामई निवासी जयसिंह, डॉ0 रामऔतार और ओमप्रकाश की करीब एक दर्जन बकरियों की बीमारी की चपेट में आने से मौत हो गयी। लगभग दो दर्जन मवेशी खुरपका, मुंहपका आदि बीमारियों से ग्रस्त हैं। ग्रामीणों ने मवेशियों का टीकाकरण न होने का आरोप लगाया है।

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