श्री कृष्ण की गीता का मुकाबला दुनिया की कोई किताब नहीं करती. गोवर्धन गिरधारी, कुशल रणनीतिकार थे. कृष्ण हुए तो अतीत में, लेकिन हैं भविष्य के. कृष्ण हर परिस्थिति में अकेले नाचते दिखते हैं. कृष्ण देवत्व की एक अवस्था है. कृष्ण के लिए शरीर एक आवरण मात्र है. उन्हीं कृष्ण का आज जन्मोत्सव है
हिंदू पंचांग के अनुसार कृष्ण जन्मोत्सव का पर्व प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस बार भादो कृष्ण अष्टमी तिथि 26 अगस्त को सुबह 03:39 से लेकर 27 अगस्त को देर रात 02:19 तक रहेगी। ग्रहस्थ लोग 26 अगस्त को जन्माष्टमी मनाएंगे। इस दिन श्रीकृष्ण की पूजा का शुभ मुहूर्त मध्यरात्रि 12:00 बजे से लेकर 12:45 बजे तक रहेगा।
- जन्माष्टमी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें और व्रत रखने का संकल्प लें।
- पूजा की शुरुआत से पहले घर और मंदिर को साफ करें।
- लड्डू गोपाल जी का पंचामृत व गंगाजल से अभिषेक करें।
- फिर उन्हें नए सुंदर वस्त्र, मुकुट, मोर पंख और बांसुरी आदि से सजाएं। पीले चंदन का तिलक लगाएं।
- माखन -मिश्री, पंजीरी, पंचामृत, ऋतु फल और मिठाई आदि चीजों का भोग लगाएं।
- कान्हा के वैदिक मंत्रों का जाप पूरे दिन मन ही मन करें।
- आरती से पूजा का समापन करें। अंत में शंखनाद करें। इसके बाद प्रसाद का वितरण करें।
- अगले दिन प्रसाद से अपने व्रत का पारण करें। पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगे।
कृष्ण विसंगतियों के साधक हैं. वे रागी भी हैं, विरागी भी. योगी भी हैं, भोगी भी. नर भी हैं नारायण भी. वे इकाई हैं और अनंत भी. रण दुर्मद भी है रणछोड़ भी. वे सहज संसारी हैं और असाधारण मित्र. विराट भी हैं सूक्ष्म भी. चक्रधर भी हैं मुरलीधर भी. वे नाचते हैं गाते हैं और रौद्र रूप भी दिखाते हैं. विसंगतियों को साधना आसान नहीं है पर उन्होंने सबको साधा इसलिए उनका व्यक्तित्व जबरदस्त आकर्षण पैदा करता है.कृष्ण अनूठे हैं. अबूझ हैं. अनोखे हैं. अजन्मा हैं. कृष्ण हुए तो अतीत में, लेकिन हैं भविष्य के. अभी भी कृष्ण मनुष्य की समझ से बाहर हैं. कृष्ण अकेले ही ऐसे देवता हैं जो धर्म की परम गहराइयों और ऊंचाइयों पर होकर भी गंभीर नहीं हैं, उदास नहीं हैं, कृष्ण नाचते हुए हैं. हंसते हुए हैं. गीत गाते हुए हैं. अतीत का सारा धर्म दुखवादी था.
कृष्ण को छोड़ दें तो अतीत का सारा धर्म उदास, आंसुओं से भरा हुआ था. राम के जीवन में दुख ही दुख है. शिव रौद्र हैं. हिंसा पर उतारू हैं. पर हंसता हुआ धर्म कृष्ण का ही है. जीसस के संबंध में कहा जाता है कि वह कभी हंसे नहीं. उनका उदास व्यक्तित्व और सूली पर लटका हुआ उनका शरीर ही हमारे चित्त में अंकित है. महावीर या बुद्ध भी हंसते हुए दिखते नहीं है. कृष्ण अकेले ही इस जीवन की समग्रता को स्वीकार करते हैं. हालांकि बुद्ध के पास एक विरक्त और आत्मालोकित मुस्कान है लेकिन वो सांसारिक नहीं है, समायोजक और सामाजिक नहीं है. कृष्ण के अधरों पर आखेटित हंसी संवाद करती है, शामिल करती है. कहते हैं कृष्ण देवकी की गोद में आते ही हंसे थे. इसलिए कृष्ण हंसती हुई मनुष्यता के प्रतिनिधि हैं. मथुरा से लेकर समूचे देश में हर साल कुछ मूढमति कृष्ण का जन्म कराते हैं. कृष्ण हर साल कैसे जन्म ले सकते हैं? कृष्ण तो अजन्मा हैं, जो जन्म नहीं लेता, फिर जो जन्म नहीं लेता वह मृत्यु का वरण कैसे करेगा? जो मरेगा नहीं वह जन्म कैसे लेगा. दरअसल, कृष्ण देवत्व की एक अवस्था हैं. एक भाव हैं जो सुषुप्ता अवस्था में होता है और जब उसकी जरूरत होती है वह प्रकट होता है. तभी तो व्यास जी ने घोषित कर रखा है कि – यदा यदा ही धर्मस्य…। दरअसल कृष्ण शरीर नहीं हैं, शरीर उसके लिए एक आवरण है. यही तो उन्होंने कुरुक्षेत्र में कहा था जिसे दुनिया ने गीता के तौर पर जाना. आज उन्हीं कृष्ण का जन्मोत्सव है. कृष्ण के साथ अपना रिश्ता जितना आत्मीय है, किसी और देवता के साथ नहीं. बचपन से एक तादात्म्य है. सखा भाव है. राज-रंग, छल कपट, भक्ति, योग, भोग, राजनीति, चोरी, मक्कारी, झूठ, फरेब… जिस ओर नजर डालें, गोपाल खड़े मिलते हैं. वे हमारे नजदीक दिखते हैं. कृष्ण का यही अनूठापन उन्हें आज भी प्रासंगिक बनाता है. सच पूछिए तो कृष्ण ही हैं जो हर उम्र में हमउम्र लगते हैं. शायद इसीलिए आज भी जन्माष्टमी पर दिल बच्चा हो जाता है. इस उत्सव को मनाने में वैसा ही जोश हममें रहता है जैसा 40 बरस पहले था. आखिर क्यों? दस बरस की उम्र में तो धर्म के प्रति वैसी आस्था भी नहीं बनती. तो आखिर क्या है इस कृष्ण में जो हमेशा संगी-साथी सा दिखता है.
श्री कृष्ण जन्मस्थान मंदिर में श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर उत्सव जोरों पर है
#WATCH | Mathura, Uttar Pradesh: Celebrations at Shri Krishna Janmasthan temple are in full swing on the occasion of Shri Krishna Janmashtami pic.twitter.com/7LX7MbodTT
— ANI (@ANI) August 26, 2024