चर्चाओं का बाजार गर्म, हर कोई अपने-अपने प्रत्याशी की जीत का कर रहा है दावा
सभी प्रत्याशी सभी जातियों का मत मिलने का कर रहे हैं दावा
कहीं प्रत्याशी के प्रति बेरुखी, लेकिन मोदी के हंै फैन
फर्रुखाबाद, समृद्धि न्यूज। लोकसभा की मतदान प्रक्रिया समाप्त होने के बाद अब मतगणना की तिथि नजदीक आने का जहां एक तरफ पार्टी के लोग व समर्थक इंतजार कर रहे हैं। वहीं जनता में भी उत्सुकता है कि जल्दी से 4 जून आये और मतों की गिनती हो। हम जान पाये कि इस बार हमने किसे बनाया अपना सांसद। कुल आठ प्रत्याशियों ने चुनाव में भाग लिया। जिसमें सपा, भाजपा, बसपा के अलावा पांच निर्दलीय है।
फर्रुखाबाद में पहली बार चुनाव में दो के बीच कांटे की टक्कर होने की चर्चा चारों तरफ हो रही है। इससे पहले चुनाव में हमेशा त्रिकोणीय संघर्ष की चर्चा होती थी, लेकिन इस बार ऐसा कहीं पर भी सुनने को नहीं आ रहा है। जन चर्चा की मानें तो बहुजन समाज पार्टी ने प्रत्याशी तो अपना उतार दिया, लेकिन चुनाव चिन्ह के वजन के हिसाब से जनता के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करा पायी और इसका मुख्य कारण यह भी हो सकता है कि महावत की बेरुखी या उदास हाथी या फिर यह भी हो सकता है कि अखाड़े में जिसे पार्टी ने उतारा उस पहलवान की कमजोरी भी हो सकती है, जिसके चलते इस बार हाथी की दहाड़ लोगों के कानों में नहीं गूंजी। यह अलग बात है कि कैडर के लोग बिना महावत के इशारा किये ही चलते रहे, लेकिन मतदाताओं को इसका एहसास नहीं हुआ कि जिस हाथी के दहाडऩे से हलचल पैदा हो जाती थी, लेकिन बसपा का अपना वोट बैंक है। जिसके पास जाने की जरुरत नहीं वह अपने आप सिंबल देखकर चला जाता है, लेकिन इस बार यह करिशमा होता नहीं दिख रहा है। बाजार से लेकर गलियारे तक जब कहीं चुनाव की चर्चा होती है तो लोग यह कहते कि महावर ढीला रहा। इस बजह से सपा और भाजपा में ही मुकाबला है। जीते कोई, लेकिन अंतराल बहुत कम हो सकता है। जहां भाजपा प्रत्याशी की बिरादरी के अलावा क्षत्रिय और ब्राह्मण, पिछड़ी जातियों के साथ-साथ बाल्मीकि समाज का भी वोट अपने खाते में बता रही है। तो वहीं समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के भी आकड़े भाजपा से कमजोर दिखायी नहीं दे रहे है। सपा प्रत्याशी डा0 नवल किशोर शाक्य के पास जहां एक तरफ उनकी बिरादरी का वोट होने का दावा किया जा रहा है। तो वहीं यादव, मुस्लिम, पाल समाज के अलावा क्षत्रिय, ब्राह्मण, लोधे राजपूत के अलावा अन्य जातियों का भी वोट उनके खेमें में बताया जा रहा है। हर कोई इन्हीं जाति आकांड़ों के आधार पर अपनी-अपनी जीत होने का दावा कर रहे है, लेकिन यह तो तय है कि इस बार कांटे का मुकाबला है। समाजवादी पार्टी को इस चुनाव में अधिक मत मिलने के कई कारण है। जैसे कांगे्रस से प्रत्याशी न होना, बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी की धीमी गति और भाजपा प्रत्याशी के प्रति लोगों में अंदरुनी नाराजगी, यह अलग बात है कि लोग मोदी के फैन हंै, लेकिन वह कहावत आपने सुनी है कि बकरे की अम्मा कब तक खैर मनायेगी। यह तो चर्चाओं का बाजार है। जो जिसका होता है वह उसी का गुणगान करता है। हर दल उसके लोग अपने-अपने प्रत्याशी की जीत का दावा भले ही कर रहे हो। असली जीत का फैसला तो ४ जून को होने वाली मतगणना से ही पता चलेगा कि इस बार जनता ने किसे बनाया अपना सांसद।