
फ़र्रुख़ाबाद समृद्धि न्यूज़ । अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर श्री महावीर दिगम्बर जैन मन्दिर, मो0 जोगिराज में दोपहर 2 बजे से भजन संध्या का आयोजन किया गया। जिसमें कन्हैयालाल जैन ने बताया कि भारतीय संस्कृति में बैशाख शुल्क तृतीया का बहुत बड़ा महत्व है, इसे अक्षय तृतीया भी कहा जाता है, जैन दर्शन में इसे श्रमण संस्कृति के साथ युग का प्रारम्भ माना जाता है। जैन दर्शन के अनुसार भारत क्षेत्र में युग का परिवर्तन भूमि व कर्मभूमि के रूप में हुआ। भोग भूमि में कृषि व कर्मों की कोई आवश्यकता नहीं, उसमें कल्प वृक्ष होते हैं, जिनसे प्राणी को मनवांछित पदार्थों की प्राप्ति हो जाती है। कर्मभूमि युग में कल्पवृक्ष भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं और जीवकों प्रतिआदि पर निर्भर रहकर कार्य करने पड़ते हैं। भगवान आदिनाथ इस युग के प्रारम्भ में प्रथम जैन तीर्थकर हुये, उन्होंने लोगों को कृषि और सत्कर्म के बारे में बताया तथा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य की सामाजिक व्यवस्थायें दी। इसलिये उन्हें आदिपुरुष व युग प्रवर्तक कहा जाता है। राजा आदिनाथ को राज्य भोगते हुये जब जीवन से वैराग्य हो गया तो उन्होंने जैन धर्म की दीक्षा ली तथा 6 महीने का उपवास लेकर तपस्या की। 6 महीने बाद जब उनकी तपस्या पूरी हुई तो वे आहार के लिये निकले, जैन दर्शन में श्रावकों द्वारा मुनियों को आहार का दान किया जाता है, लेकिन उस समय किसी को भी आहार की चर्या का ज्ञान नहीं था, जिसके कारण उन्हें और 6 महीने तक निराहार रहना पड़ा। बैशाख शुक्ल तीज अक्षय तृतीया के दिन मुनि आदिनाथ जब बिहार भ्रमण करते हुये हस्तिनापुर पहुंचे, वहाँ के राजा श्रेयांश व राजा सोम को रात्रि को एक स्पप्न दिखा, जिसमें उन्हें अपने पिछले भव के मुनि को आहार देने की चर्या का स्मरण हो गया। तत्पश्चात् हस्तिनापुर पहुंचे, आदिनाथ को उन्होंने प्रथम आहार इक्षुरस (गन्ने का रस) का दिया, जैन दर्शन में अक्षय तृतीया का बहुत बड़ा महत्व है और जैन श्रावक इस दिन इक्षुरस का दान करते हैं। भजनों के बाद सभी भक्तों को गन्ने का रस पिलाया गया, जिसमें कन्हैयालाल जैन, कमल कुमार जैन, अभिषेक जैन, रोमिल जैन ने व्यवस्था देखी। भजनों में श्रीमती मनी जैन, श्रीमती पूनम जैन, श्रीमती अंजू जैन, श्रीमती आरती जैन, श्रीमती वर्षा जैन, शिखा जैन, ममता जैन, वीना जैन, मोनी जैन, नन्दिता जैन आदि महिलायें उपस्थित रहीं।