मनरेगा में भ्रष्टाचार के चलते असल उद्देश्य से भटकी योजना,24% तक कमीशन लेने के बाद भी नहीं होती कार्यों की फीडिंग,

हरदोई से संतोष तिवारी की रिपोर्ट,
हरदोई , समृद्धि न्यूज। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि मेहनत कश मजदूरों का हक अफसरों और दलालों की जेब में जा रहा है। ब्लॉक स्तर पर फाइलों से लेकर भुगतान तक हर चरण पर खुलेआम कमीशनखोरी का खेल चल रहा है। जानकारी के अनुसार, ब्लॉक शाहाबाद में मनरेगा कार्यों की फीडिंग के लिए ग्राम प्रधानों और रोजगार सेवकों से 24 प्रतिशत तक कमीशन वसूला जाता है,फिर भी कई बार भुगतान नहीं किया जाता।
सूत्रों के मुताबिक यह 24 प्रतिशत कमीशन ब्लॉक से लेकर उच्च अधिकारियों तक जाता है।इसमें ग्राम पंचायत सचिव,जेई मनरेगा, जेई आरईएस,कंप्यूटर ऑपरेटर, एपीओ मनरेगा,मुख्य लेखाकार और यहां तक कि बीडीओ तक का हिस्सा तय है।अफसरों की मिली भगत से यह अवैध वसूली लंबे समय से चल रही है।बताया जाता है कि जिन ग्राम प्रधानों और रोजगार सेवकों द्वारा यह कमीशन समय से नहीं दिया जाता,उनके कार्यों की फीडिंग रोक दी जाती है या फिर तकनीकी कारण बताकर भुगतान लटका दिया जाता है।

वहीं,कुछ “चहेते” और सत्ता से जुड़े ग्राम प्रधानों के कार्यों को प्राथमिकता के आधार पर फीडिंग कराकर तत्काल भुगतान कर दिया जाता है। इससे स्पष्ट होता है कि ब्लॉक में ईमानदार प्रधानों और मजदूरों के साथ खुला अन्याय हो रहा है।यहां पर पूरा सिस्टम केवल कमीशन पर चल रहा है।
कई प्रधानों ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि जब तक ब्लॉक के जिम्मेदारों को निर्धारित हिस्सा नहीं दिया जाता,तब तक पोर्टल पर फीडिंग आगे नहीं बढ़ती।कई बार अधिकारी फाइल वापस भेज देते हैं या किसी न किसी तकनीकी त्रुटि का बहाना बनाकर मामला लटका देते हैं।गौरतलब हो कि मनरेगा योजना का उद्देश्य ग्रामीण गरीबों को रोजगार और आजीविका का साधन देना है,लेकिन शाहाबाद ब्लॉक में यह योजना भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुकी है।मजदूरों को समय से भुगतान नहीं मिलता,जबकि अधिकारियों की जेब हर कार्य की फीडिंग के साथ भर जाती है।
जॉब कार्ड धारकों ने मांग की है कि इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए।यदि अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई नहीं हुई तो मजदूरों और प्रधानों का शोषण यूं ही चलता रहेगा।वहीं लोगों का कहना है कि जब तक भ्रष्ट तंत्र पर लगाम नहीं लगेगी,तब तक मनरेगा जैसी योजनाओं का असली उद्देश्य कभी पूरा नहीं हो सकेगा।
सरकार द्वारा पारदर्शिता और डिजिटल भुगतान प्रणाली लागू किए जाने के बावजूद,ब्लॉक स्तर पर बैठे अधिकारी नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं।

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