श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के चौथे दिन कथा व्यास ने धर्म और अधर्म का अंतर बताया
हलिया (मिर्ज़ापुर): क्षेत्र के बबुरा रघुनाथ सिंह (कठारी) गांव में श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन बुधवार को वृंदावन से पधारे कथावाचक भागवताचार्य बद्रीश जी महाराज ने भक्तों को धर्म और अधर्म का विस्तार से अंतर समझाया। कहा कि धर्म की गति बहुत सूक्ष्म है। भगवान की छाती से धर्म और पीठ से अधर्म की उत्पत्ति हुई।अधर्म की पत्नी का नाम मृषा यानी असत्य है। भक्त ध्रुव और प्रह्लाद की कथा वर्णन करते हुए श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया। राजा उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव ने पैर के एक अंगूठे पर खड़े होकर कठिन तप शुरू किया। बालक ध्रुव की तपस्या को देख दिगपाल, देवता, महादेव ने भगवान विष्णु से बालक ध्रुव की तपस्या को सफल करने की याचना की। इसके बाद प्रभु उत्कण्ठित मन से ध्रुव का तप देखने गरुण वाहन से निकले।भगवान विष्णु भक्त ध्रुव का तप देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए और ध्रुव को परमपद प्रदान किया। कथावाचक ने कहा कि यज्ञ करना धर्म है, लेकिन वह किसी महापुरुष के अपमान या अहित के लिए किया जा रहा हो तो वह गलत और धर्म विरुद्ध है। दक्ष का यज्ञ इसका उदाहरण है, जिसे भगवान शिव के गणों ने इसलिए विध्वंस कर दिया कि वह भोलेनाथ का अपमान करने के लिए हो रहा था। कहा कि माला जपना धर्म है लेकिन किसी के अहित के लिए मंत्र जाप करना धर्म नही है। कथावाचक ने कहा कि भक्त प्रह्लाद की भगवान के प्रति अटूट आस्था ने खंभे से नरसिंह भगवान को प्रकट करा दिया। हिरण्यकशिपु के द्वारा प्रह्लाद को तमाम यातनाएं दी गई। भगवान नरसिंह ने हिरण्यकशिपु का वध कर भक्त प्रह्लाद की रक्षा की। कथावाचक ने कहा कि भगवान भक्तों की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। कथा यजमान मणि प्रसाद मिश्र, मालती मिश्र, शिव शंकर द्विवेदी, विजय बहादुर सिंह, गीता सिंह, पंकज मिश्रा, छोटे सिंह,मिथिलेश सिंह, कौशलेंद्र गुप्ता, आदित्य तिवारी पुष्पेन्द्र सिंह,सहित सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित रहे।