फर्रुखाबाद, समृद्धि न्यूज। उमड़ी कल थी, मिट आज चली मैं नीर भरी दुख की बदली, विस्तृत नभ का कोई कोना मेरा न कभी अपना होना, परिचय इतना इतिहास यही, उमड़ी कल थी मिट आज चली……………छायावाद की दीपशिखा से आलोकित करने वाली महादेवी वर्मा फर्रुखाबाद में जन्मीं तो पांचाल धरा धन्य हो गयी, लेकिन आज भी विडंबना है कि उनकी प्रतिमा के आसपास फल विक्रेता उन्हें घेरे रहते हैं। उनकी पुण्यतिथि पर हिन्दी प्रेमियों व महादेवी के अनुयाइयों ने उन्हें याद किया और अपने श्रद्धासुमन छायावाद की देवी को अर्पित किये। मान्यवर काशीराम महाविद्यालय निनौआ की शिक्षिका डा0 शालिनी ने बताया के महादेवी वर्मा चार प्रमुख स्तम्भों में एक प्रमुख मानी जाती हैं। 26 मार्च 1907 को उनका जन्म फर्रुखाबाद मेंं हुआ। उनकी 36वें पुण्यतिथि पर आधुनिक युग की मीरा को हम उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। एलआईसी प्राचार्य व समाजसेवी तथा अभिव्यंजना संस्था के समन्वयक भूपेन्द्र प्रताप सिंह ने बताया कि हिन्दी साहित्य में साहित्य प्रेमियों के बीच आधुनिक युग की मीरा के नाम से सुविख्यात महादेवी वर्मा को हिन्दी के विशाल मंदिर में सरस्वती का जन्म फर्रुखाबाद में हुआ। उन्होंने इलाहाबाद में साहित्य संसद की स्थापना करके हिन्दी साहित्य को अत्यंत समृद्ध किया। नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, सप्तपर्णा जैसी उत्कृष्ट काव्यकृतियों को लेखनी दी।
समाजसेवी व व्यावारी नेता, हिन्दी प्रेमी व अभिव्यंजना संस्था के कार्यक्रम संयोजक संजय गर्ग ने बताया कि फर्रुखाबाद का नाम पूरे भारत में आज भी महादेवी वर्मा के नाम से जाना जाता है। छायावाद की कवियत्री महादेवी वर्मा ने देश में अपनी ख्याति बनायी। आज उनकी यह छाप सबके दिलों में सीज है। ऐसी महान छायावाद देवी को हम सत्-सत् नमन करते हैं और उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
कानोडिया बालिका इंटर कालेज की सहायक अध्यापिका दर्शना शुक्ला ने बताया कि छायावाद के नाम से जानी जाने वाली कवियत्री महादेवी वर्मा की रचनायें आज भी प्रमुख हैं। नीर भरी दुख की बदली व उनकी चार अन्य कृतियां जो मशहूर हुईं। आज भी उनको सब याद करते हैं। हिन्दी संस्थान का पहला भारत भारती सम्मान महादेवी वर्मा को मिला। खड़ी बोली को उन्होंने हिन्दी की मधुरता और कोमलता से सुसज्जित किया।
प्रस्तुति, लक्ष्मीकांत भारद्धाज, संवाददाता
पुण्यतिथि पर दुख की बदली नीर भरी को नमन्
