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सैफई आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय में आरटीआई का जवाब नहीं, पारदर्शिता पर उठे सवाल

सैफई, समृद्धि न्यूज। उत्तर प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय सैफई जैसे राज्य स्तरीय उच्च संस्थान में सूचना का अधिकार अधिनियम को दरकिनार किया जा रहा है। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा महीनों से सूचना मांगने वाले आवेदनों का कोई जवाब नहीं दिया गया है। सूचना मांगने की प्रक्रिया को लेकर विश्वविद्यालय की गंभीर उदासीनता अब सार्वजनिक सवालों के घेरे में है। यह स्थिति न केवल सूचना के अधिकार कानून का खुला उल्लंघन है, बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी गहरा प्रश्नचिह्न है।
विश्वविद्यालय से विगत दो महीनों में सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन किए गए, जिन पर नियत 30 दिन की अवधि में उत्तर दिया जाना चाहिए था। लेकिन 60 दिन बीतने के बावजूद न तो सूचना उपलब्ध कराई गई और न ही देरी का कोई कारण बताया गया। इससे स्पष्ट है कि या तो संस्थान के पास सूचनाएं देने की मंशा नहीं है या फिर लापरवाही इतनी गहरी है कि कानून की अनदेखी सामान्य हो गई है।
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 7(1) के तहत यह प्रावधान है कि आवेदन प्राप्त होने की तिथि से 30 दिन के भीतर संबंधित जन सूचना अधिकारी को वांछित सूचना उपलब्ध करानी होती है। ऐसा न करने पर अधिनियम की धारा 20(1) के अंतर्गत उस अधिकारी पर प्रतिदिन 250 के हिसाब से अधिकतम 25,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। यदि यह प्रमाणित हो जाए कि अधिकारी ने जानबूझकर सूचना देने से इनकार किया या अनावश्यक विलंब किया, तो विभागीय कार्रवाई की भी सिफारिश की जा सकती है।
फिलहाल, विश्वविद्यालय के जन सूचना अधिकारी असिस्टेंट प्रोफेसर ए.एन. जी. हैदर (फिजियोलॉजी विभाग) द्वारा न तो समय पर सूचना दी गई और न ही मौखिक आग्रहों का संज्ञान लिया गया। यह निष्क्रियता न केवल अधिनियम की अवमानना है, बल्कि उस संस्थान की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े करती है, जो पारदर्शिता और उत्तरदायित्व का दावा करता है।
सूचना न देने की यह प्रवृत्ति इस ओर भी संकेत करती है कि संस्थान के भीतर कई ऐसे बिंदु हैं, जिनकी जानकारी सार्वजनिक नहीं होने दी जा रही। यह जनहित, पत्रकारिता और लोकतांत्रिक जवाबदेही की भावना को आहत करता है। सूचनाएं सार्वजनिक संस्थानों की संपत्ति हैं और नागरिकों को समय पर जानकारी प्राप्त होना उनका संवैधानिक अधिकार है। इस संबंध में कुलसचिव अभिनव रंजन श्रीवास्तव ने कहा कि यदि सूचना देने में किसी स्तर पर देरी हुई है तो जांच कर जवाब तलब किया जाएगा। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय पारदर्शिता के पक्ष में है और किसी सूचना को जानबूझकर रोका नहीं जाना चाहिए।

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