उन्नाव,समृद्धि न्यूज़। बारासगवर थाना क्षेत्र में तीन साल के मासूम यश के अपहरण और हत्या के मामले में बड़ा न्यायिक फैसला आया है। अदालत ने आरोपी दिनेश कोरी और उसकी मां सरोजनी को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया।
क्या था मामला?
यह घटना 22 फरवरी 2018 की है, जब मलेपुर गांव निवासी राकेश कोरी का तीन वर्षीय बेटा यश घर के बाहर खेलते समय अचानक लापता हो गया। परिवार ने काफी खोजबीन की, लेकिन बच्चे का कोई सुराग नहीं मिला।
8 मार्च 2018 को राकेश को एक फोन आया, जिसमें अपहरणकर्ताओं ने 50 हजार रुपये की फिरौती मांगी। पुलिस ने अगले दिन फिरौती पत्र बरामद किया और उसी दिन बच्चे की हत्या कर शव को घर में दफनाने की जानकारी सामने आई।
पुलिस का दावा और गिरफ्तारी
पुलिस ने राकेश के चचेरे भाई दिनेश कोरी और उसकी मां सरोजनी को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस का दावा था कि दोनों ने बच्चे का अपहरण किया और हत्या के बाद शव को अपने घर की फर्श के नीचे दफना दिया।
सात साल तक चला मुकदमा, आखिरकार मिला इंसाफ
मुकदमे के दौरान वादी पक्ष से राकेश, उनके पिता छविनाथ और चाचा शिवनाथ की गवाही हुई। सरोजनी को स्वास्थ्य आधार पर हाईकोर्ट से जमानत मिल गई, लेकिन दिनेश की जमानत याचिका खारिज कर दी गई।
हाईकोर्ट ने छह महीने में मामले के निपटारे का आदेश दिया था, लेकिन न्यायालय के रिक्त होने और जांच अधिकारियों की गवाही न होने के कारण मामला लंबा खिंच गया। दिनेश के वकील अजय मिश्रा ने पुलिस जांच की खामियां उजागर करते हुए दावा किया कि उनके मुवक्किल को झूठे मामले में फंसाया गया था।
आरोपियों की रिहाई और प्रतिक्रिया
अदालत ने सबूतों के अभाव में दोनों आरोपियों को बरी कर दिया। होली से कुछ दिन पहले दिनेश को उच्च न्यायालय से जमानत मिली थी, और अब वह पूरी तरह निर्दोष साबित हो गया है।
फैसले के बाद दिनेश ने कहा, “मुझे झूठे आरोपों में फंसाया गया था। मेरी जमीन हड़पने की साजिश थी, लेकिन ऊपर वाले और न्यायपालिका पर भरोसा था। सात साल तक जेल में रहना और मानसिक प्रताड़ना सहना बहुत दर्दनाक था। इसका हिसाब कोई नहीं चुका सकता।”
यह फैसला पुलिस जांच की खामियों और न्यायिक प्रक्रिया में देरी को उजागर करता है। अब सवाल यह उठता है कि सात साल तक जेल में रहने वाले निर्दोष व्यक्ति को हुए मानसिक और सामाजिक नुकसान की भरपाई कौन करेगा?