दो दिन मनाई जाएगी शीतला अष्टमी

फर्रुखाबाद, समृद्धि न्यूज। होली त्यौहार के बाद शीतला अष्टमी का बहुत बड़ा महत्व है। पंचांग के अनुसार इस साल चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का आरंभ शुरुआत 1 अप्रैल को रात 9 बजकर 9 मिनट पर होगा और अगले दिन यानी 2 अप्रैल को 8 बजकर 8 मिनट पर समाप्त होगी। इसलिए उदयातिथि के अनुसार 2 अप्रैल को शीतला अष्टमी मनाई जाएगी। अष्टमी इस बार सोमवार और मंगलवार के दिन पडी हैं। जिसके चलते सोमवार को बढ़पुर स्थित प्राचीन सिद्धपीठ शीतला माता मंदिर में सुबह से माता की पूजन करने के लिए महिला श्रद्धालुओं की भीड़ देखने को मिली। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि शीतला माता हर तरह के पापों का नाश करती हैं और अपने भक्तों के तन-मन को शीतल प्रदान करती हैं। इस पर्व को बसिया पर्व कहते हैं। इस दिन बासी भोजन किया जाता है।
स्कंद पुराण में माता शीतला का वर्णन है। जिसमें उन्हें चेचक रोग की देवी बताया गया है। उनके स्वरूप का वर्णन करते हुए बताया गया है कि माता शीतला अपने हाथों में कलश, सूप, झाडू और नीम के पत्ते धारण किए हुए हैं। वे गर्दभ की सवारी किए हुए हैं। शीतला माता के साथ ज्वरासुर ज्वर का दैत्य, हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण त्वचा रोग के देवता व रक्तवती देवी विराजमान होती हैं। इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक व रोगाणुनाशक जल है। मान्यता है कि एक बार शीतला माता ने सोचा कि चलो देखूं कि धरती पर मेरी पूजा कौन करता है, कौन मुझे मानता है। यही सोचकर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डूंगरी गांव में आईं और देखा कि इस गांव में मेरा मंदिर भी नहीं है, ना मेरी पूजा होती है। माता शीतला गांव की गलियों में घूम रही थीं, तभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी (मांड) नीचे फेंका। वह उबलता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा, जिससे शीतला माता के शरीर में (छाले) फफोले पड़ गए। शीतला माता के पूरे शरीर में जलन होने लगी। माता गांव में इधर-उधर भागकर चिल्लाने लगीं अरे मैं जल गई, मेरा शरीर तप रहा है, जल रहा है। कोई मेरी मदद करों, लेकिन उस गांव में किसी ने शीतला माता की मदद नहीं की। वहीं अपने घर के बाहर एक कुम्हारन (महिला) बैठी थी। उस महिला ने देखा कि अरे यह बूढ़ी माई तो बहुत जल गई हैं। इनके पूरे शरीर में तपन है। शरीर में फफोले पड़ गए हैं। यह तपन सहन नहीं कर पा रही हैं। तब उस महिला ने कहा मां तू यहां आकार बैठ जा। महिला ने उस बूढ़ी माई पर खूब ठंडा पानी डाला और बोली मां मेरे घर में रात की बनी हुई रबड़ी रखी है, थोड़ा दही भी है। तू दही-रबड़ी खा लें। जब बूढ़ी माई ने ठंडी बाजरे की रोटी, रबड़ी और दही खाया तो उनके शरीर को ठंडक मिली। मंदिर के महामंत्री सचिन कटिहार ने बताया कि पर्व ऋतु परिवर्तन का भी संकेत देता है। इसके बाद से ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत होती है। ऐसी मान्यता है कि शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा के समय उन्हें खास मीठे चावलों का भोग चढ़ाया जाता है। माता को ठंडी चीजें प्रिय हैं। अष्टमी के दिन घर में न ही चूल्हा जलाया जाता है और न ही भोजन बनता है। सप्तमी को भोजन बनाकर रख दिया जाता है। गुड़-चीनी से बना गुलगुला, मीठा भात, फीका भात, बाजरे की रोटी बनती है। फिर उसे मिट्टी के बर्तन कुंडवारा भरा जाता है। अष्टमी को माता को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। बासी ही खाया जाता है।

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