राष्ट्रीय संगोष्ठी में 180 शोध पत्र पड़े गये

सभ्यता का विकास अपनी मातृभाषा में ही होता है: प्रो0 सुभाष चंद्र अग्रवाल
फर्रुखाबाद, समृद्धि न्यूज। भारतीय महाविद्यालय परिसर में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन हुआ। भारतीय ज्ञान परंपरा के आलोक में राष्ट्रीय शिक्षा नीति क्या प्रभाव डालती है। संगोष्ठी का समापन सत्र में मुख्य अतिथि छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर के सीडीसी डॉ0 राजेश कुमार द्विवेदी ने भारतीय ज्ञान परंपरा में ऋषि मुनियों एवं संस्कृति के महत्त्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने शल्य चिकित्सक सुश्रुत, भास्कराचार्य पाइथागोरस प्रमेय आदि पर जानकारी दी। मुख्य वक्ता प्रोफेसर सुभाष चंद्र अग्रवाल ने शिक्षक का माध्यम मातृभाषा तथा रुचि के अनुसार शिक्षा क्षेत्रीय शिक्षा तथा शिक्षा तकनीकी के लिए होनी चाहिए, इस संबंध में प्राचीन शिक्षा पद्धति तथा अरवाचीन शिक्षा पद्धति 2020 की तुलनात्मक व्याख्या प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि हम यदि अपनी विरासत को जाने तो निश्चित ही हमारा विकास तीव्र गति से होगा। क्योंकि दुनिया की कोई भी सभ्यता का विकास उसकी अपनी मातृभाषा में ही होता है, यह विडंबना है कि हमारे देश में जितनी भी प्राचीन ज्ञान व तकनीकी की पद्धतियां रही हैं, उनकी जानकारी कि हम सभी ने अवहेलना की। नई शिक्षा नीति 2020 में इस कमी को दूर करने का प्रयास किया है। बद्री विशाल स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ0 सीडी यादव ने योग शिक्षा एवं आयुर्वेद की आवश्यकता तथा परंपरागत शिक्षा प्रणाली में इसके अवदान पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का संचालन डॉ0 आलोक बिहारी लाल ने किया। महाविद्यालय प्रबंध समिति के सचिव सुधीर चंद शर्मा ने अध्यक्षता की। महाविद्यालय प्रबंधन समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र कुमार त्रिपाठी ने पारंपरिक ज्ञान की उपयोगिता तथा नवीन कलेवर में उसके उपयोग पर बल दिया। प्राचार्य डा0 रमन प्रकाश ने अतिथियों का स्वागत किया। संगोष्ठी के समन्वय डॉ0 रमाशंकर पाण्डेय ने जानकारी प्रदान की कि इस संगोष्ठी में 180 से अधिक शोध पत्र विभिन्न सत्रों में पड़े गए।
संगोष्ठी सचिव डॉ0 मधुप कुमार ने बताया कि भारत के लगभग 10 राज्यों से से शोध पत्र आए तथा सेमिनार का संचालन हाइब्रिड मोड में हुआ। इस अवसर पर डॉ0 विवेक कुमार सिंह, डॉ0 समीर कुमार गुप्ता, डॉ0 निधिश कुमार सिंह, डॉ0 प्रेम शंकर पांडेय, डॉ0 धनंजय कुशवाहा, विजय कुमार तथा महाविद्यालय का स्टाफ उपस्थित रहा।

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