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सहंसरा नदी के तट पर मिला जीवाश्म, डायनासोर का हो सकता है अंडा

समृद्धि न्यूज। शिवालिक हिमालय के सहंसरा नदी घाटी, गांव कोठरी, जिला सहारनपुर में 2025 में खोजा गया एक जीवाश्म अंडा, मैक्रोएलॉन्गैटूलिथस ओटैक्सन की विशेषताओं को दर्शाता है, जो आमतौर पर ओविरैप्टोरिड थैरोपॉड्स, जैसे नेमेग्टोमाया बार्सबोल्डी, से संबंधित है। इस अंडे की लंबाई 19 सेमी, चौड़ाई 7.5 सेमीए आयतन 447 सेमीङए और लंबाई-चौड़ाई अनुपात ्2.5 हैए जो इसे भारत में प्रचलित टाइटैनोसॉरिड मेगालूलिथस अंडों से अलग करता है। इसका उच्च घनत्व (3689 किग्रा/मीङ) शिवालिक क्षेत्र की लौह-.युक्त खनिजीकरण प्रक्रिया को दर्शाता है। यह खोज भारत में थैरोपॉड अंडों की दुर्लभ उपस्थिति को उजागर करती है, जो संभवत: एक नए टैक्सन या ओविरैप्टोरिड-जैसे डायनासोर की व्यापक भौगोलिक उपस्थिति का संकेत देती है। हम इसकी जीवाश्मवैज्ञानिक महत्व और थैरोपॉड विविधता पर इसके प्रभावों पर चर्चा करते हैं।

जानकारी के मुताबिक, शिवालिक से निकलने वाली सहंसरा नदी के तट से अंडे का जीवाश्म मिला है। इसकी खोज हिमालयन पर्यावरण संस्थान देहरादून के निदेशक डॉ0 उमर सैफ और उनकी टीम ने की है। उनका दावा है कि यह डायनासोर का अंडा है। हालांकि इसकी गहराई से जांच के लिए वैज्ञानिकों को भी आमंत्रित किया गया है। सैफ ने बताया कि यह अंडा उन्हें दो महीने पहले मिला था। इसके बाद उन्होंने दो महीने तक डायनासोर की प्रजातियों पर आधारित रिसर्च पेपर्स को स्टडी किया। अभी तक दुनिया में मिले डायनासोर के अंडों से मिलान किया। इस प्रारंभिक जांच में यह इस निर्णय पर पहुंचे हैं कि यह जीवाश्म अंडा डायनासोर का प्रतीत हो रहा है। शिवालिक हिमालय के सहनसारा नदी घाटी में खोजा गया जीवाश्म अंडा एक दुर्लभ मैक्रो, लॉन्गैटूलिथस नमूना है, जो संभवत: एक ओविरैप्टोरिड-जैसे थैरोपॉड द्वारा उत्पादित है। नेमेग्टोमाया बार्सबोल्डी के समानता और टाइटैनोसॉरिड मेगालूलिथस से अंतर एक नए टैक्सन या ओविरैप्टोरिड-जैसे डायनासोरों की व्यापक उपस्थिति का संकेत देता है। इसका उच्च घनत्व क्षेत्रीय तापमानिक स्थितियों को दर्शाता है, जिसके लिए आगे के अध्ययन की आवश्यकता है। यह खोज भारत में थैरोपॉड विविधता और जीव-भूगोल को समझने में योगदान देती है और सहंसरा नदी घाटी को एक महत्वपूर्ण जीवाश्म स्थल के रूप में स्थापित करती है।

मिला दुलर्भ अंडा

डॉ0 उमर सैफ ने बताया कि डायनासोर अंडे प्रजनन रणनीतियों, प्राचीन पर्यावरणों और जीव-भूगोल को समझने में महत्वपूर्ण हैं। भारत में ऊपरी क्रिटेशिबस काल यानी लाखों वर्ष पहले के जीवाश्म अंडे मुख्य रूप से मेगालुलियस ओटेक्सन के हैं, जो टाइरेनोसॉरिड सॉरोपोइंस जैसे आइसिसॉरस, जैनोसॉरस से संबंधित हैंए लेकिन भारत में दुर्लभ है।

यह भी मिला

शिवालिक पहाडिय़ों से प्लेसियोसॉर जीवाश्म भी मिला है। डा0 उमर सैफ ने बताया कि नए प्लेसियोसॉर जीवाश्म, जिसे एसआर-10 का नाम दिया गया है। उनका दावा है कि यह डायनासोर का आंशिक पंख है, जिसकी लंबाई 46 सेंटीमीटरए मोटाई चार सेंटीमीटर और चौड़ाई में भिन्नता (शुरू में नौ सेंटीमीटर, मध्य में 15.5 सेंटीमीटर और अंत में आठ सेंटीमीटर) है।

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