जिसमें कहा था कि सरकारी दस्तावेजों में उनका जेंडर फीमेल से बदलकर मेल कर दिया जाए और नाम एम. अनुसूया की जगह एम. अनुकाथिर सूर्या कर दिया जाए. केंद्र सरकार ने 9 जुलाई को उन्हें नाम और जेंडर बदलने की इजाजत दे दी.
हैदराबाद में आईआरएस अधिकारी के नाम और लिंग परिवर्तन की एप्लीकेशन को केंद्र सरकार ने मंजूरी दे दी है। अब वे एम अनुसूया की जगह एम अनुकाथिर सूर्या के नाम से पहचानी जाएंगी। हैदराबाद में इससे पहले भी कई अनोखे फैसले लिए जा चुके हैं। जो कि देशभर के लिए मिसाल होते हैं। एम अनुसूया जो कि वर्तमान में हैदराबाद में सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण के मुख्य आयुक्त के कार्यालय में बतौर संयुक्त आयुक्त के पद पर तैनात हैं। पिछले दिनों अनुसूया ने अपना नाम और लिंग परिवर्तन करने के लिए सरकार से अनुरोध किया था। एम अनुसूया अपना नाम बदलकर एम अनुकाथिर सूर्या और लिंग को महिला से पुरुष में परिवर्तित करवाना चाहती थीं। इस मामले पर विचार करने के बाद वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अवर सचिव ने आदेश जारी किया। जिसमें उन्होंने अनुसूया के अनुरोध को स्वीकार कर लिया। उन्होंने आदेश में कहा कि अधिकारी को अब से सभी आधिकारिक दस्तावेजों में श्री एम अनुकाथिर सूर्या करने की अनुमति दे दी है। हैदराबाद ने इन मामलो में पहले भी मिसाल कायम कर चुका है। जून 2015 में नेशनल अकादमी ऑफ लीगल स्टडीज एंड रिसर्च यूनिवर्सिटी के बीए एलएलबी छात्र ने अनुरोध किया था कि स्नातक सर्टिफिकेट में लिंग की पहचान नहीं होनी चाहिए। इसके बाद यूनिवर्सिटी ने नाम के साथ ‘Ms’ की जगह ‘Mx’ लिखने का छात्र का अनुरोध स्वीकार किया। इस आदेश के बाद छात्र ने कहा कि यह एक पहला सकारात्मक कदम है।
केंद्र सरकार ने क्या कहा?
केंद्र सरकार ने अपने आदेश में कहा, ‘मिस एम. अनुसूया, IRS (C&IT: 2013), जो वर्तमान में CESTAT हैदराबाद में जॉइंट कमिश्नर के पद पर तैनात हैं, उन्होंने अपना नाम एम. अनुसूया से एम अनुकाथिर सूर्या करने और जेंडर फीमेल से मेल करने का अनुरोध किया था. उनके अनुरोध पर विचार के बाद स इसकी मंजूरी दी जाती है. अब सभी दस्तावेजों में मिस्टर एम अनुकाथिर सूर्या के नाम से जाना जाएगा…
सुप्रीम कोर्ट का कौन सा फैसला बना आधार?
केंद्र सरकार ने आईआरएस अफसर को जेंडर और नाम बदलने की इजाजत ऐसे वक्त में दी है, जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा NALSA केस में दिए ऐतिहासिक फैसले को 10 साल हो रहे हैं. इसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने थर्ड जेंडर को मान्यता देते हुए कहा था कि जेंडर आईडेंटिटी व्यक्तिगत पसंद है. अनुसूया के नाम और जेंडर बदलने का आधार भी यही फैसला बना. 15 अप्रैल 2014 सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि ‘ऐसी कोई वजह नहीं है कि ट्रांसजेंडर को मूलभूत अधिकारों से वंचित रखा जाए, जिसमें सम्मान के साथ जीवन और आजादी का अधिकार, निजता, व्यक्ति स्वतंत्रता, शिक्षा, हिंसा और शोषण के खिलाफ अधिकार शामिल हैं. अब वक्त आ गया है कि हमें इसे मान्यता देनें, ताकि ट्रांसजेंडर्स की सम्मानजनक जिंदगी सुनिश्चित हो सके. यह तभी हो सकता है जब हम उन्हें ”थर्ड जेंडर” के रूप में मान्यता दें’. इसी के बाद सरकारी दस्तावेजों, फॉर्म इत्यादि में मेल और फीमेल के साथ थर्ड जेंडर का कॉलम जोड़ा गया.