कई युगों की ऐतिहासिक धरोहरों को अपने में समेटे है पौराणिक नगरी कंपिल

त्रेतायुग में रामेश्वरनाथ मंदिर में शत्रुघन ने की थी त्रर्यम्बकं शिवलिंग की स्थापना
सावन के महीने में दूरदराज से भक्तगण आकर करते हैं शिवलिंग की पूजा अर्चना
फर्रुखाबाद, समृद्धि न्यूज। पतित पावनी गंगा के तट पर स्थित छोटा सा शहर कंपिल कई युगों की ऐतिहासिक धरोहरों को अपने में समेटे है। पौराणिक नगरी कंपिल में त्रेतायुग में भगवान राम के अनुज शत्रुघ्न ने यहां के रामेश्वर नाथ मंदिर में शिवलिग की स्थापना की थी। मान्यता है कि सीता जी अशोक वाटिका में इसी शिवलिग की पूजा किया करती थीं। यहीं पर कपिल मुनि का आश्रम है। उन्हीं के नाम पर इस नगरी का नाम काम्पिल्य पड़ा था, जो बाद में कंपिल हो गया। त्रेताकालीन इस मंदिर में शिवलिंग के दर्शन करने के लिए आसपास के साथ ही काफी दूर-दूर के लोग पहुंचते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि यहां जो भी भक्त अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
शास्त्रों के अनुसार रामेश्वरनाथ मंदिर में स्थापित त्रेता युग के शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि इसके पूजन से कुबेर का आर्शीवाद मिलता है। मंदिर में स्थापित त्रर्यम्बकं शिवलिंग पहले कुबेर के पास था। बाद में रावण कुबेर को जीत कर पुष्पक विमान व इस शिवलिंग को अपने साथ लंका ले गया। लंका में चंडीश्वर नाम से शिवलिंग की स्थापना की। रामायण काल में सीता भी लंका प्रवास के दौरान अशोक वाटिका में इसकी पूजा करती थीं। लंका विजय के बाद भगवान राम इसे अयोध्या ले आये थे। उन्होंने अपने अनुज शत्रुघ्न को यह शिवलिंग पवित्र स्थल पर स्थापित करने को दिया था। मधुवन मथुरा में लवणासुर दैत्य का वध करने के बाद अयोध्या लौटते समय शत्रुघ्न ने कंपिल में तीन धनुष बारह हाथ सिंह भूमि के मध्य इसे स्थापित किया था। इसे उपज्योतिर्लिग की मान्यता मिली। सावन के महीने में यहां भक्तों का तांता लगता है। जो भक्त सच्चे दिल से अपनी-अपनी मनोकामनायें लेकर आते हैं, उनकी मनोकामनायें अवश्य ही पूर्ण होती हैं। इस मंदिर का शास्त्रों में भी वर्णन मिलता है। काशी के बाद सबसे ज्यादा शिवलिंग कंपिल में ही स्थित हैं।

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