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भागवत कथा के श्रवण से जन्म जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते-अविचल महाराज

कम्पिल, समृद्धि न्यूज। गांव त्यौरखास में सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा व ज्ञान यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। आचार्य अविचल जी महाराज ने कथा के माध्यम से सत्य मार्ग पर चलने व ईश्वर की भक्ति के बारे में श्रोताओं को जानकारी दी।
आचार्य ने बताया कि श्रीमद् भागवत कथा सुनने से मनुष्य को भक्ति के लिए ज्ञान की प्राप्ति होती है। उसी के आधार पर उसे मुक्ति मिलती है। कहा कि प्रत्येक प्राणी किसी न किसी तरह से दुखी व परेशान है। कोई स्वास्थ्य से दुखी है, कोई परिवार, कोई धन, तो कोई संतान को लेकर परेशान है। सभी परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए ईश्वर की आराधना ही एकमात्र मार्ग है। इसलिए व्यक्ति को अपने जीवन का कुछ समय हरिभजन में लगाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भागवत कथा वह अमृत है जिसके पान से भय, भूख, रोग व संताप सब कुछ स्वत: ही नष्ट हो जाता है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को मन, बुद्धि, चित एकाग्र कर अपने आप को ईश्वर के चरणों में समर्पित करते हुए भागवत कथा को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए। श्रीमद भागवत कथा का श्रवण करने से जन्म जन्मांतर के पापों का नाश हो जाता है। श्रीमद् भागवत कथा के श्रवण से महापापी का भी उद्धार हो जाता है। कथा व्यास ने बताया कि धुंधुकारी अति दुष्ट था। उसके पिता आत्मदेव भी उसके उत्पातों से दुखी होकर वन में चले गए थे। धुंधुकारी वैश्याओं के साथ रहकर भोगों में डूब गया और एक दिन उन्हीं के द्वारा मार डाला गया। अपने कुकर्मों के फलस्वरूप वह प्रेत बन गया और भूख प्यास से व्याकुल रहने लगा। एक दिन व्याकुल धुंधुकारी अपने भाई गोकर्ण के पास पहुंचा और संकेत रूप में अपनी व्यथा सुनाकर उससे सहायता की याचना की। इसलिए धुंधुकारी की मुक्ति के लिए गया श्राद्ध पहले ही कर चुके थे, लेकिन इस समय प्रेत रूप में धुंधुकारी को पाकर गया श्राद्ध की निष्फलता देख उन्होंने पुन: विचार विमर्श किया। अंत में स्वयं सूर्य नारायण ने गोकर्ण को निर्देश दिया कि श्रीमद्भागवत का पारायण कीजिए। उसका श्रवण मनन करने से ही मुक्ति होगी। श्रीमद् भागवत का पारायण हुआ। गोकर्ण वक्ता बने और धुंधुकारी ने वायु रूप होने के कारण एक सात गांठों वाले बांस के भीतर बैठकर कथा का श्रवण मनन किया। सात दिनों में एक-ृएक करके बांस की सातों गांठे फट गईं। धुंधुकारी भागवत के श्रवण मनन से सात दिनों में सात गांठे तोडक़र पवित्र होकर प्रेत योनि से मुक्त होकर भगवान के वैकुंठ धाम में चला गया। कथा के बाद प्रसाद के वितरण किया गया। इस दौरान सेवाराम, उदयवीर, रामऔतार, रामसिंह, बाबा जगदू, भूरे, संतोष जुगाड़ी आदि मौजूद रहे।

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