प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समग्र द्विपक्षीय संबंधों, विशेषकर ऊर्जा, व्यापार, सम्पर्क, डिजिटलीकरण और रक्षा के क्षेत्रों में, को मजबूत करने के तरीकों का पता लगाने के लिए तीन दिवसीय यात्रा पर शुक्रवार शाम यहां पहुंचे। प्रधानमंत्री बैंकॉक की अपनी यात्रा पूरी करने के बाद श्रीलंका की राजधानी पहुंचे, जहां उन्होंने बिम्सटेक (बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल) के शिखर सम्मेलन में भाग लिया। प्रधानमंत्री मोदी शनिवार को राष्ट्रपति अनुरा कुमार दिसानायके के साथ व्यापक वार्ता करेंगे। बैठक के बाद भारत और श्रीलंका द्वारा लगभग 10 परिणामों पर सहमति व्यक्त किये जाने की उम्मीद है, जिनमें रक्षा, ऊर्जा सुरक्षा और डिजिटलीकरण के क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देना भी शामिल है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार शाम (4 अप्रैल) को श्रीलंका के तीन दिवसीय दौरे पर कोलंबो पहुंचे. पीएम मोदी का स्वागत करने के लिए श्रीलंका के विदेश मंत्री विजिता हेराथ, स्वास्थ्य मंत्री नलिंदा जयतिस्सा और मत्स्य पालन मंत्री रामलिंगम चंद्रशेखर एयरपोर्ट पर मौजूद रहे. पीएम मोदी की यात्रा का उद्देश्य समग्र द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के तरीके तलाशना है. पिछले 7 महीनों में किसी विदेशी नेता का ये पहला श्रीलंका दौरा है.
पीएम मोदी आखिरी बार 2019 में श्रीलंका दौरे पर गए थे और 2015 के बाद से यह द्वीप राष्ट्र की उनकी चौथी यात्रा है. प्रधानमंत्री का ये दौरा कई मायनों में बेहद खास है. भारत और श्रीलंका के बीच रक्षा संबंधों को मजबूत करने के साथ-साथ ऊर्जा, व्यापार और कनेक्टिविटी में सहयोग बढ़ाने के लिए है.
क्यों खास है पीएम मोदी का श्रीलंका दौरा?
पीएम मोदी की श्रीलंका यात्रा का उद्देश्य द्विपक्षीय रक्षा संबंधों को बढ़ाना और ऊर्जा, व्यापार और संपर्क क्षेत्रों में साझेदारी को मजबूत करना है. पीएम मोदी और राष्ट्रपति दिसानायका के बीच हाल ही में हुई चर्चाओं के बाद दोनों नेताओं की तरफ से एक महत्वपूर्ण रक्षा सहयोग समझौते को अंतिम रूप दिए जाने की उम्मीद है. इस दौरान भारत और श्रीलंका में 10 क्षेत्रों में समझौते होने की उम्मीद है.
इनमें खासतौर से रक्षा समझौते पर सबकी नजर है. इसके पीछे की वजह है कि भारत और श्रीलंका के बीच पहली बार रक्षा समझौता होने जा रहा है. यही कारण है पूरी दुनिया की निगाहें दोनों के बीच होने वाली डील पर टिकी हुई है.
श्रीलंका दौरे की चीन भी बना वजह
हंबनटोटा, हिंद महासागर के महत्वपूर्ण समुद्री व्यापार मार्गों के पास स्थित है. ये बंदरगाह दुनिया के सबसे व्यस्त बंदरगाहों में से एक है. 150 करोड़ डॉलर की लागत से बनाए गए हंबनटोटा बंदरगाह का निर्माण चीन से कर्ज लेकर किया गया था. लेकिन कर्ज चुकाने में नाकाम होने के बाद, श्रीलंका ने इसे 99 साल के लीज पर चीन को सौंप दिया. यह वही बंदरगाह है जिसे चीन अब अपनी रणनीतिक गतिविधियों के लिए इस्तेमाल कर रहा है.
इसके कारण भारत और श्रीलंका के रिश्तों में तल्खी देखने को मिली थी. अब ऐसे में भारत की इस डील के जरिए कोशिश है कि श्रीलंका में चीन के प्रभाव को कम किया जाए. इसके लिए जो भी काम करने होंगे वो किए जाएंगे.