मध्य प्रदेश में 6 साल की बच्ची से रेप-मर्डर के दोषी को फांसी की सजा, कोर्ट में जज का छलका दर्द, लिख दी कविता,

पता नहीं था नींद में मुझे ले जाएगा। ‘वो’ मौत का साया बनकर।। मैं चीखती थी, चिल्लाती थी, किसी ने सुना नहीं

6 साल की बच्ची से बलात्कार एवं हत्या के दोषी को मृत्युदंड की सजा सुनाई है। कोर्ट ने पीड़िता के माता-पिता को 4 लाख रुपए प्रतिकर स्वरूप देने के आदेश दिए हैं। पुलिस ने 10 दिन में मामले का चालान पेश किया और 2 माह 28 दिन में ही कोर्ट से फैसला आ गया। सुनवाई के दौरान 41 गवाह पेश किए गए ।

नर्मदापुरमः मध्य प्रदेश में नर्मदापुरम जिले के सिवनी मालवा में 6 साल की बच्ची से रेप के बाद हत्या के दोषी को कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई। कोर्ट ने आरोपी पर 3000 रुपए जुर्माना भी लगाया। साथ ही पीड़ित परिवार को चार लाख मुआवजा भी मिलेगा। प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश तबस्सुम खान ने अपने फैसले में मासूम के लिए कविता भी लिखी।

88 दिन चली सुनवाई

जानकारी के अनुसार, इसी साल 2 जनवरी को दोषी अजय ने बच्ची का अपहरण किया। झाड़ियों में ले जाकर दुष्कर्म किया। जब वह चिल्लाई तो मुंह दबाकर उसकी हत्या कर दी। पूछताछ में अजय ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था। कोर्ट में इस मामले पर 88 दिन सुनवाई चली। सुनवाई के दौरान आरोपी को दोषी माना गया।

अंतिम बहस के दौरान विशेष लोक अभियोजक मनोज जाट ने सुनाई कविता

वो छोटी सी बच्ची थी, ढंग से बोल ना पाती थी।
देख के जिसकी मासूमियत, उदासी मुस्कान बन जाती थी।।
छह साल की बच्ची पे, ये कैसा अत्याचार हुआ।
एक बच्ची को बचा सके ना, कैसा मुल्क लाचार हुआ।।
गर अब भी हम ना सुधरे तो, एक दिन ऐसा आएगा।
इस देश को बेटी देने में, भगवान भी जब घबराएगा।।

फैसले में न्यायाधीश तबस्सुम खान ने लिखी यह कविता

इठलाती, नाचती छ: साल की परी थी, मैं अपने मम्मी-पापा की लाडली थी
2 से 3 जनवरी 2025 की थी वो दरमियानी रात, जब कोई नहीं था मेरे साथ।
इठलाती, नाचती छ: साल की परी थी, मैं अपने मम्मी-पापा की लाडली थी।।
सुला दिया था उस रात बड़े प्यार से मां ने मुझे घर पर।
पता नहीं था नींद में मुझे ले जाएगा। ‘वो’ मौत का साया बनकर।।
जब नींद से जागी, तो बहुत अकेली और डरी थी मैं।
सिसकियां को लेकर मम्मी-पापा को याद बहुत करी थी मैं।
न जाने क्या-क्या किया मेरे साथ।
मैं चीखती थी, चिल्लाती थी, लेकिन किसी ने न सुनी मेरी आवाज।।
थी गुड़ियों से खेलने की उम्र मेरी, पर उसने मुझे खिलोनी बना दिया।
‘वो’ भी तो था तीन बच्चों का पिता, फिर मुझे क्यों किया अपनों से जुदा।
खेल खेलकर मुझे तोड़ा, फिर मेरा मुंह दबाकर, मरता हुआ झाड़ियों में छोड़ दिया।
हां मैं हूं निर्भया, हां फिर एक निर्भया, एक छोटा सा प्रश्न उठा रही हूं।।
जो नारी का अपमान करे, क्या वो मर्द हो सकता है।
क्या जो इंसाफ निर्भया को मिला, वह मुझे मिल सकता है।।

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