फर्रुखाबाद, समृद्धि न्यूज। 25 जून 1975 को अपनी सत्ता और कुर्सी सदा सर्वदा बनाए रखने की नियत से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल घोषित कर देश के बुद्धिजीवियों तथा अपने विरोधी राजनेताओं को मीसा- डी0आई0आर0 जैसे काले कानूनों के अंतर्गत कारागारो में बंद कर दिया। आपातकाल की 50व़ी बरसी पर प्रदेश भर के लोकतंत्र रक्षक आज प्रतिवर्ष की भातिं प्रेस क्लब लखनऊ में एकत्र हुए और दीप जलाकर एवं आपातकाल के विरुद्ध अपना विरोध दर्ज कराया।
समिति के प्रदेश अध्यक्ष ब्रज किशोर मिश्र ने कहा कि 25 जून 1975 को आजाद भारत एक बार फिर आंतरिक गुलामी की बेडियों में जकड़ गया था। आपातकाल के कालखंड को याद करते हुए उन्होंने कहा तानाशाही सरकार ने न अपील, न वकील, न दलील के सिद्धांत पर आपातकाल का विरोध करने वाले समस्त राजनेताओं, विद्याथियो को जेल की काल कोठरियों में डाल दिया गया था और अनेकों प्रकार की अमानवीय यातनाए देकर आन्दोलन को कमजोर करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि जनता के मौलिक अधिकारों पर कुठाराघात कर तत्कालीन तानाशाह ने आचार्य विनोवा भावे तक को अपमानित किया था, किन्तु 7 तालों के भीतर कुम्भकरणी नींद सोयी सरकार कों उखाड़ फंेकने की कसम खा चुके लोकतंत्र रक्षक हटे नहीं, डिगे नही, डटे रहे। लोकशक्ति और तानाशाह के मध्य हुए इस जबरदस्त संघर्ष में अलोकतांत्रिक शक्तियों को धूल धूसरित करते हुए लोकतंत्र पुन: बहाल हुआ।
कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना ने कहा कि स्वंत्रत भारत में आपातकाल जैसे हालात बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है। आपातकाल बुनियादी तौर पर फांसीवादी मानसिकता की देन है। अहिंसक आन्दोलन कर जेल जाने वाले लोगों को रात-रात भर बर्फ की सिल्लियों से बांध कर लिटाना, नाखूनों में कील ठोकना, पंखो से उल्टा लटकाने जैसी ना जाने कितनी ही अमानवीय यातनाए लोकनायक जयप्रकाश तथा अन्य अनेको लोकतंत्र समर्थक राजनैतिक बंदियों को आपातकालीन अवधि में दी गई।
विधान परिषद के सदस्य पवन सिंह चौहान ने आपातकाल का विरोध जताते हुए कहा कि भारतीय जीवन में लोकतंत्र लोकजीवन का धर्म है। आपातकाल से सबक लेते हुए हम सभी को लोकतंत्र के सभी पक्षों को मजबूत करने का प्रण लेना होगा ताकि देश को दुबारा आपातकाल का दंश न झेलना पड़े। सूचना आयुक्त पी0एन0 द्विवेदी ने कहा कि आपातकाल में लोकतंत्र रक्षकों को स्वमूत्र तक पिलाई गयी और उनका मनोबल गिराने के लिए उन्हें विभिन्न प्रकार की अमानवीय यातनाये दी गई, किसी के नाखून खीचें गये तो किसी के गुप्तांगो में मिर्च ठूसी गई, किन्तु लोकतंत्र रक्षको ने उस बर्बर तानाशाह के सामने सर झुकाने से मना कर दिया जिसके परिणाम स्वरुप ना जाने कितने ही लोकतंत्र सेनानियों की कारागार के अंदर ही मृत्यु हो गई।
लोकतंत्र सेनानी समिति के प्रदेश महामंत्री रमाशंकर त्रिपाठी ने आपातकाल के उन 19 महीनों को याद करते हुए कहा कि जेल के अंदर प्रतीत नहीं होता था कि आपातकाल का न्रसंश राज कभी खत्म होगा और अब हम लोग कभी जेल की काल कोठरियों से बाहर निकल पायेगे।
इस मौके पर संतराम त्रिवेदी, शिव कुमार, अजीत सिंह, सुभाष आनन्द, रामसनेही कनोजिया, चंद्रशेखर कटियार, माताप्रसाद तिवारी, मनोरमा मिश्रा, टीकम सिंह, चेतराम, राजकुमार चतुर्वेदी, मकबूल बेग, बीरेन्द्र कटियार, राम लखन मिश्रा, अरुण कटियार, हरीशचन्द्र पाण्डेय, शिवराम सिंह, मधु राठौर, कृष्ण मुरारी पाठक, सतीश कटियार,आशा दुबे, राजेन्द्र त्रिपाठी, राम सिंह बाथम, प्रेमा बाथम, शंकरलाल सक्सेना, श्रीराम यादव, समरादित्य सिंह, रामवृक्ष तिवारी, तारावती अहिरवार, देवता प्रसाद,रामेश्वर दयाल विभिन्न विभिन्न स्थानों से आये अनेको लोकतंत्र सेनानी मौजूद रहे।
प्रेस क्लब लखनऊ ने आपातकाल के विरुद्ध जताया विरोध
