एडीओ पंचायत पर भ्रष्टाचार के आरोप — ग्रामीण आज भी प्यासे
हरदोई। विकासखंड शाहाबाद में चौदहवें और पंद्रहवें वित्त आयोग के तहत कराए गए हैंडपंपों की मरम्मत और रिबोर कार्यों में बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप सामने आए हैं। 71 ग्राम पंचायतों में नल मरम्मत और रिबोर के नाम पर लाखों रुपये खर्च दिखाए गए, लेकिन अधिकांश गांवों में हैंडपंप आज भी खराब पड़े हैं। ग्रामीणों को पीने के पानी के लिए दूर-दूर भटकना पड़ रहा है।
जानकारी के अनुसार, पंचायत विभाग द्वारा वित्तीय वर्ष 2023-24 में चौदहवें और पंद्रहवें वित्त आयोग की धनराशि से नल मरम्मत, रिबोर और साफ-सफाई के नाम पर करोड़ों रुपये का बजट आवंटित किया गया था। ग्राम पंचायतों ने एडीओ पंचायत और संबंधित अधिकारियों की मिलीभगत से कागजों पर मरम्मत कार्य पूरे दिखा दिए। वहीं, धरातल पर न तो हैंडपंप रिबोर हुए और न ही खराब नलों की मरम्मत की गई।
कई ग्राम पंचायतों के ग्रामीणों का कहना है कि वर्षों से उनके गांव के हैंडपंप खराब पड़े हैं। कई जगह नलों से पानी में जंग, बदबू और गंदगी आती है, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। बावजूद इसके, अधिकारियों ने संबंधित ग्राम प्रधानों के साथ मिलीभगत कर फर्जी भुगतान कर दिए। जिन गांवों में नलों की मरम्मत या रिबोर दिखाया गया, वहां एक भी कार्य नहीं हुआ है।
सूत्रों की मानें तो इस पूरे मामले में एडीओ पंचायत की भूमिका सबसे संदिग्ध मानी जा रही है। विभाग के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि एडीओ पंचायत की देखरेख में ही भुगतान की स्वीकृति दी गई। ठेकेदारों से सांठगांठ कर कागजों पर बिल बनवाए गए और बगैर जांच के करोड़ों का भुगतान जारी कर दिया गया। कई ग्राम पंचायतों में एक ही नल को बार-बार मरम्मत और रिबोर दिखाकर फर्जी बिल तैयार किए गए हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि शासन की ओर से पानी जैसी मूलभूत सुविधा के लिए हर साल करोड़ों रुपये भेजे जाते हैं, लेकिन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाने से जनता को इसका लाभ नहीं मिल पाता। हैरानी की बात यह है कि नल मरम्मत का भुगतान होने के बावजूद गांवों में नल ज्यों के त्यों पड़े हैं।
स्थानीय लोगों ने जिलाधिकारी हरदोई से पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग की है। उनका कहना है कि अगर सभी ग्राम पंचायतों के कार्यों की निष्पक्ष जांच हो तो करोड़ों रुपये के फर्जी भुगतान का खुलासा होगा। वहीं विभागीय अधिकारी मामले में कुछ भी कहने से बच रहे हैं।
इस मामले ने एक बार फिर ग्रामीण विकास कार्यों में हो रहे भ्रष्टाचार की पोल खोल दी है। सरकार जहां पारदर्शिता और जवाबदेही की बात करती है, वहीं जमीनी हकीकत यह है कि अधिकारी और कर्मचारी जनता की प्यास बुझाने के बजाय भ्रष्टाचार की प्यास बुझाने में जुटे हैं।
