हरदोई से संतोष तिवारी की रिपोर्ट
हरदोई , समृद्धि न्यूज। की शाहाबाद विधानसभा की राजनीति में इस समय नए समीकरण बनते दिखाई दे रहे हैं। विधानसभा चुनाव भले ही अभी दूर हो,लेकिन सियासी गलियारों में हलचलें अभी से तेज हो गई हैं। इन हलचलों के केंद्र में हैं डॉक्टर अशोक बाजपेई और समाजसेविका पारीसा तिवारी,जिनके सक्रिय राजनीति में कदम रखते ही स्थानीय राजनीतिक तापमान में अचानक वृद्धि देखी जा रही है।
श्रीमती पारीसा तिवारी ने जिस तेज़ी और आत्मविश्वास के साथ क्षेत्र में अपनी पकड़ मज़बूत की है, उसने सत्ताधारी दल तक में बेचैनी बढ़ा दी है। सूत्रों का कहना है कि उनकी लगातार बढ़ती जनसंपर्क यात्राएँ और आम जनता के बीच उनकी लोकप्रियता से मौजूदा उच्च शिक्षा राज्यमंत्री रजनी तिवारी की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है।
पारीसा तिवारी ने बहुत कम समय में ही खुद को महज़ “समाजसेविका” की सीमाओं से आगे निकाल लिया है। वे अब जनता की नब्ज़ समझने वाली, ज़मीनी स्तर पर सक्रिय नेता के रूप में उभर रही हैं। चाहे ग्राम पंचायतों में साफ़-सफ़ाई और स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएँ हों, या शहर के विकास कार्यों में लापरवाही — वे हर मसले पर आवाज़ उठा रही हैं। आमजन से मिलना,समस्याएँ सुनना और समाधान के लिए विभागीय अधिकारियों से संवाद करना अब उनके रोज़मर्रा के कामों में शामिल हो गया है।
उनकी यही सहजता, मृदुभाषा और व्यवहारिकता उन्हें बाकी संभावित उम्मीदवारों से अलग पहचान दिला रही है। विधानसभा के विभिन्न कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति और जनता के बीच बढ़ता जुड़ाव इस बात का प्रमाण है कि वे जनता के दिलों में अपनी जगह बना चुकी हैं।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि शाहाबाद की सियासत अब एक “नई करवट” ले रही है, जहाँ नारे नहीं, नीयत बोलेगी। यह बदलाव की हवा पारीसा तिवारी के रूप में तेज़ी से फैल रही है।
दूसरी ओर भाजपा के अंदरूनी गलियारों में भी इस नई सक्रियता को लेकर हलचल है। कुछ वरिष्ठ भाजपा कार्यकर्ता संगठन के नगर नेतृत्व से नाराज़ बताए जा रहे हैं। उनका कहना है कि नगर की राजनीति अब कुछ सीमित चेहरों तक सिमट गई है,जहाँ ज़मीनी कार्यकर्ताओं को केवल “तालियाँ बजाने” की भूमिका दी जाती है। यही कारण है कि कई पुराने कार्यकर्ता अब पारीसा तिवारी के साथ खड़े दिखने लगे हैं, जिन्हें उनमें “नई ऊर्जा और उम्मीद” दिखाई दे रही है।
भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेता हालांकि पारीसा तिवारी की बढ़ती लोकप्रियता को “नई हवा” के बजाय “अंदरूनी चुनौती” के रूप में देख रहे हैं। उनका मानना है कि संगठन के भीतर जो असंतोष है, उसे पारीसा तिवारी ने एक नए अवसर में बदल दिया है।
हाल ही में क्षेत्र में आयोजित भागवत कथाओं और धार्मिक आयोजनों में भी यह प्रतिस्पर्धा साफ दिखाई दी। कई अवसरों पर जहाँ मंत्री रजनी तिवारी पहुंचने से पहले ही पारीसा तिवारी ने अपनी मौजूदगी दर्ज करा दी,वहीं सोशल मीडिया पर भी जनता ने इन तस्वीरों को जमकर साझा किया। शहर में चर्चा का विषय यही रहा कि “जो काम सालों में नहीं हुआ,वह पारीसा तिवारी ने कुछ ही महीनों में कर दिखाया।”
पारीसा तिवारी की बढ़ती लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वे अब हर तबके के लोगों से सीधे संवाद कर रही हैं — चाहे महिलाएँ हों,युवा हों या बुज़ुर्ग।उनकी यही जनसंपर्क शैली उन्हें बाकी नेताओं से अलग बनाती है।
डॉक्टर अशोक बाजपेई की सक्रियता से भी स्थानीय राजनीति को एक नई दिशा मिलती दिख रही है।राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बाजपेई और तिवारी — दोनों की दावेदारी से शाहाबाद की सियासत में अब मुकाबला और दिलचस्प हो गया है।
अब जनता के दिलों से उठती आवाज़ साफ़ सुनाई देने लगी है — “जो नेताओं ने सालों में नहीं किया, वह पारीसा तिवारी ने कुछ ही महीनों में कर दिखाया।” यही कारण है कि क्षेत्र के सियासी समीकरण बदलते नज़र आ रहे हैं।
उनकी विनम्रता,कार्यशैली और जनता से जुड़ाव ने सत्ता के गलियारों में सन्नाटा और विपक्ष के खेमे में नई उम्मीद पैदा कर दी है। आने वाले विधानसभा चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह “नई करवट” शाहाबाद की राजनीति को एक नए युग की ओर ले जाएगी या पुराने समीकरण फिर खुद को दोहराने की कोशिश करेंगे।
