जेबें भरने के चक्कर में धरती के भगवान बने हैवान…………….

मसेनी में संचालिक सैकड़ों अस्पतालों में अप्रशिक्षित चिकित्सक कर रहे उपचार
 दवाई से लेकर जॉचों तक की सुविधा एक ही छत के नीचे मुहैया करते संचालक
गरीब मरीज का खेत, मकान तक बिकवा देते डाक्टर, अंत में खड़े कर देते हाथ
फर्रुखाबाद, समृद्धि न्यूज। डाक्टर को भगवान का दूसरा रुप कहा जाता है, लेकिन जब यही डाक्टर मानवता को भूलकर पैसे कमाने में जुट जाते हैं, तो यही मरीज के लिए हैवान साबित होते हैं। आवास विकास से लेकर मसेनी तक ऐसे सैकड़ों अस्पताल संचालित हैं, जिसमें न तो कई प्रशिक्षित चिकित्सक मिलेगा और न ही प्रशिक्षित स्टाफ। ऊपर से अस्पताल में ही पैथॉलाजी व मेडिकल खोलकर मरीज का खेत, मकान तक बिकवा देते हैं और जब मरीज की हालत उनके बस से बाहर हो जाती है, तो वह उसे बाहर के लिए रेफर कर देते हैं। जिससे मरीज की या तो रास्ते में मौत हो जाती है या फिर अस्पताल पहुंचते-पहुंचते वह दम तोड़ देता है।
जानकारी के अनुसार गलत खानपान और दिनचर्या के चलते आज के दौर में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा को पूर्ण रुप से स्वस्थ्य होगा। हर घर में कोई न कोई व्यक्ति किसी न किसी बीमार से ग्रस्त है। सक्षम लोग तो अपने पैसे की दम पर बाहर इलाज करा लेते हैं, लेकिन गरीब व्यक्ति अस्पतालों की मंडी कहे जाने वाले मसेनी की ओर रुख करता है। बताते चलें कि मसेनी में करीब एक सैकड़ा अस्पताल संचालित हैं। इन अस्पताल में अधिकांश अस्पताल तो ऐसे हैं जिनके पास न तो डाक्टर हैं और न ही प्रशिक्षित स्टाफ। जब कोई सीरियस मरीज आता है, तो इधर उधर अस्पताल से कांटेक्ट रखते हैं और उनके बुलवा लेते हैं और उसका ट्रीटमेंट चालू कर देते हैं। डाक्टर देखकर तथा दिशा निर्देश देकर चले जाते हैं। बाकी का काम यहां मौजूद अप्रशिक्षित स्टाफ करता है। यदि मरीज सही हो गया तो ठीक अन्यथा जब बस से बाहर हो जाता है, तो उसको बाहर के लिए रेफर कर देते हैं। इसके अलावा अन्य कई अस्पताल तो ऐसे हैं जिनमें अप्रिशिक्षित डाक्टर ही मरीजों का उपचार करते हैं और मरीज से धीरे-धीरे पैसा जमा कराते रहते हैं। जब उसके पास पैसा खत्म हो जाता है, तो वह अपना खेत, पात, मकान आदि या तो बेचता है या फिर गिरवीं रखता है और बराबर उसको यही अश्वासन दिया जाता है कि आपका मरीज ठीक है, क्योंकि अंदर आईसीयू में किसी को जाने की अनुमति नहीं होती है। जब मरीज की हालत अत्यंत गंभीर हो जाती है और वह मरने की कगार पर पहुंच जाता है, तो उसको बाहर रेफर कर दिया जाता है। जब तीमारदार उसके लेकर जाते हैं, तो या तो उसकी रास्ते में मौत हो जाती है, या फिर अस्पताल पहुंचने पर चिकित्सक उसे मृत घोषित कर देते हैं। इतनी ही नहीं अस्पताल संचालक अपने अस्पताल में मेडिकल तथा पैथॉलाजी खोलकर भी कमाई करते हैं। जिससे अधिकांश लोगों की रिपोर्ट गलत बन जाती है। उसका खुलासा जब होता है, जब वह बाहर कहीं अपनी जांच कराता है। जिससे कभी-कभी तो अस्पताल में झगड़े तक की नौबत आ जाती है। जब कभी भी स्वास्थ्य विभाग इन अस्पतालों पर शिकंजा कसता है, तो अधिकांश चिकित्सक अपना अस्पताल बंद कर फरार हो जाते हैं या फिर ले देकर मामला सुलटा दिया जाता है। इनको सिफ अपनी जेबें भरने से मतलब होता है।

एसीएमओ ने माना कचरा निस्तारण न होने की मिल रहीं शिकायतें

फर्रुखाबाद। प्राइवेट अस्पतालों तथा खैराती अस्पतालों से निकलने वाला कचरा प्लाटों अथवा खुले स्थानों पर बेरतीब तरीके से फेंक दिया जाता है। इसका कोई निस्तारण नहीं किया जाता है। जिसको जानवर खाकर अपना जान तक गवां देते हैं। वहीं जब इस संबंध में एसीएमओ रंजन गौतम से जानकारी की गयी, तो उन्होंने बताया कि अस्पतालों से निकलने वाले कचरे को उठाने के लिए कानपुर की एक कंपनी का ठेका दिया गया है। उससे यह करार हुआ था कि उनकी एक गाड़ी यहां आकर प्रतिदिन बायो वेस्ट कचरा उठायेगी, लेकिन जानकारी में आया है कि उस कंपनी की गाड़ी कभी कभार आती है। प्रतिदिन नहीं आती है। इसलिए उस कंपनी को नोटिस दिया जायेगा और फिर भी न सुधरने पर दूसरी कंपनी को ठेका दिया जायेगा। उन्होंने बताया कि कायमगंज आदि से भी मुझे ऐसी ही सूचना मिली है। इस समस्या का जल्द से जल्द निस्तारण कराया जायेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *