फर्रुखाबाद, समृद्धि न्यूज। मुहर्रम इस्लामिक हिजरी कैलेंडर का पहला महीना होता है, इसी महीने से इस्लामिक नववर्ष की शुरुआत होती है। इसे इस्लाम के चार पवित्र महीनों में एक माना जाता है। मुहर्रम में मुसलमान को अधिक से अधिक अल्लाह की इबादत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार मुहर्रम का त्योहार मुहर्रम महीने की दसवीं तिथि को मनाया जाता है।
दरगाह हजऱत सय्यद मखदूम शाहबुद्दीन औलिया के सज्जादा नशीन सूफी अल्हाज मुहम्मद शरीफ खान उर्फ मोहब्बत शाह बताते हैं कि यज़ीद की ज़ालिम सत्ता के आगे झुकने के बजाय इमाम हुसैन ने अपने 72 साथियों के साथ कर्बला की तपती रेत पर शहादत दी। ये लड़ाई सिर्फ एक युद्ध नहीं थी, बल्कि सत्तावाद और न्याय, अत्याचार और इंसानियत के बीच संघर्ष थी। आज भी यह इतिहास हर मजलिस और हर जुलूस में सच्चाई और न्याय के लिए डटे रहने का सबक देता है। मुहर्रम में ही हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी। हजरत इमाम हुसैन इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के नवासे थे। हुसैन की याद में ही मुहर्रम पर ताजिया उठाया जाता है। इमामबाड़ों तक ग़म, सब्र और शहादत की आवाज़ें गूंजने लगी हैं। यह महीना न सिर्फ इस्लामी नए साल की शुरुआत का प्रतीक है, बल्कि इमाम हुसैन और उनके साथियों की कर्बला में दी गई कुर्बानी की याद में पूरी दुनिया के मुसलमानों के लिए भावनात्मक आस्था का केंद्र है। इमामबाड़ों में मजलिस होती है और कुर्बानी का जिक्र होता है। जुलूस-ए ताजिया निकालते जाते है और अलम उठते है। मोहब्बत शाह बताते हैं कि मोहर्रम सिर्फ शोक का महीना नहीं, बल्कि यह उस उसूल और उस त्याग का प्रतीक है जो इमाम हुसैन ने इंसानियत के लिए दिया। आज भी ये पैग़ाम जिंदा है, अगर बात सच्चाई की हो तो सिर झुकाना नहीं है।
इमाम हुसैन ने अपने 72 साथियों के साथ कर्बला की तपती रेत पर दी शहादत: मोहब्बत शाह
