फर्रुखाबाद, समृद्धि न्यूज। जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने किसान भाइयों से अपील की है कि इस समय वायुमंडल में तापमान निरन्तर गिर रहा है। तापमान गिरने तथा आद्र्रता बढऩे से आपके द्वारा बोयी गयीं फसलों में फंफूदीजनित रोगों के लगने की सम्भावना बढ़ जाती है। साथ ही मौसम में उतार चढ़ाव होने पर माहू, थ्रिप्स आदि कीटों के लगने की सम्भावना हो जाती है। ऐसी स्थिति में बोयी गयीं फसलों की निरन्तर देखरेख करने की आवश्यकता है। बोयी गयीं फसलों में आलू व सरसों की फसलों में इस समय सबसे अधिक रोगों व कीटों से प्रभावित होती हैं। आलू व सरसों की फसलों में रोगों व कीटों के नियंत्रण के लिए कुछ सुझाव दिये गये हैं। जिसमें आलू की फसल में माहू, थ्रिप्स कीटों के नियंत्रण के लिए एजाडिरैक्टिन (नील ऑयल) ०.15 प्रतिशत ई0सी0 की 2 लीटर की मात्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करें। रसायनिक नियंत्रण के लिए डाइमेथोएट 30 प्रतिशत ई0सी0 की 1.5 एम0एल0 मात्रा प्रति लीटर पानी अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस0एल0 मात्रा प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिडक़ाव करें। आलू की फसल में इस समय अगेती व पिछेती झुलसा रोग का प्रकोप की सम्भावना सबसे अधिक होती है। अगेती झुलसा से पत्तियों पर कत्थई भूरे रंग के छोटे-छोटे धब्बे बनते हैं। जो धीरे-धीरे बढ़ जाते हैं तथा पिछेती झुलसा में पत्तियों व तनों पर भूरे रंग के धब्बे तथा धब्बों के ठीक निचली सतह पर रुई जैसी फंगस जमा हो जाती है। पिछेती झुलसा रोग आलू की फसल पर तीव्र गति से बढ़ता है। उसको तुरन्त नियंत्रितच करने की आवश्यकता होती है। अगेती व पिछेती झुलसा रोग पर नियंत्रण के लिए मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्ल्यू0पी0 की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी अथवा कार्वेन्डाजिम 12 प्रतिशत तथा मैंकेजेब 63 प्रतिशत डब्ल्यू0पी0 की २ ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी अथवा जिनेव 75 प्रतिशत डब्ल्यू0पी0 की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर फसल पर छिडक़ाव करें। सरसों की फसल में मुख्य रुप से आल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग लगता हैे। जिसमें पत्तियों तथा फलियों पर कत्थई रंग के धब्बे बनते हैं। जो गोल छल्ले के रुप में होते हैं। तीव्र प्रकोप होने पर यह छल्ले आपस में मिल जाते हैं। जिससे पूरी पत्ती झुलस जाती है। रोग के नियंत्रण के लिए मैंकोजेब ७५ प्रतिशत डब्ल्यू0पी0 अथवा जिनेव ७५ प्रतिशत डब्ल्यू0पी0 की 2 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब 600 ले 750 लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिडक़ाव करें।