ताजिया मुख्य मार्ग होते हुए पहुंचे कर्बला, किया गया सुपुर्द-ए खाक
फर्रुखाबाद, समृद्धि न्यूज। योम ए आशूरा (मुहर्रम की 10 तारीख) पर शहर में ताजिया नजर आये। हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए मनाए जाने वाले इस त्योहार पर अकीदतमंद लोगों ने रोजा रखा, लंगर बांटा, घरों और मस्जिदों में खास इबादत की।
योम-ए आशूरा पर शहर के विभिन्न हिस्सों से ताजियों का जुलूस निकाला गया। जुलूस धीरे-धीरे कर्बला की तरफ बढ़ता गया। जहां ताजिए, अलम सवारी विसर्जित करने की रस्म पूरी की गई। शहर में अनेक स्थानों पर इन जुलूसों का स्वागत भी किया गया। मोहर्रम कमेटी के पदाधिकारियों आदि को सम्मानित भी किया गया। ठंडी सडक़ मेहंदी बाग से ताजिया उठाये गये, जो भूरा वाली गली, घुमना, चौक, पक्कापुल, रकाबगंज होते हुए कर्बला पहुंचे। जहां सुपुर्द-ए खाक किया गया। हुसैन के शैदाई मातमी धुन के साथ हुसैन की शदायें बुलंद की।
आशूरा और मुहर्रम वस्तुत: अरबी शब्द से उद्घृत है। मुहर्रम का शाब्दिक का अर्थ है निषिद्ध। इस्लामिक परंपरा के अनुसार मुहर्रम का महीना इस्लामिक कैलेंडर के सबसे पाक महीनों में एक है। इस दरमियान युद्ध करना वर्जित होता है। आशूरा इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने मुहर्रम की 10वीं तिथि को मनाया जाता है। इस्लाम में आशूरा को स्मृति दिवस के रूप में देखा जाता है। कहा जाता है कि यजीद एक बहुत कू्रर शासक था। वह चाहता था कि और की तरह इमाम हुसैन भी उसके अनुसार कार्य करें, लेकिन यजीद का इमाम हुसैन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। एक दिन यजीद को पता चला कि इमाम हुसैन कर्बला में पहुंचे हैं, उसने कर्बला का पानी बंद करवा दिया, लेकिन इमाम हुसैन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। वह इमाम के दबाव के आगे नहीं झुके। इसी बीच मुहर्रम की 10वीं तिथि यौम-ए-आशूरा को यजीद ने इमाम हुसैन और उनके साथियों पर आक्रमण करवा दिया। इमाम हुसैन ने अपने 72 साथियों के साथ यजीद की भारी-भरकम सेना का भरसक सामना किया, लेकिन संख्या में बहुत कम होने के कारण वे वीरता से लड़ते हुए शहीद हो गए। इसके बाद से हर साल यौम-ए-आशूरा पर मुस्लिम समुदाय मातम मनाता है। इस मौके पर मौलाना सदाकत हुसैन शैथली, आफताब हुसैन, अम्मार अली जैदी, मुन्तजिर हुसैन जैदी, सैय्यद मुशर्रत अली जैदी, परवेश हुसैन, मुनब्बर हुसैन, मुद्दसर काजमी, मोहसिन काजमी, कम्बर आब्दी, लियाकत हुसैन, नफीस हुसैन, जुगनू आदि लोग मौजूद रहे। कांगे्रस नेता अंकुर मिश्रा भी जुलूस में शामिल हुए। वहीं मातमी जुलूस में महिलाओं व बच्चों ने भाग लिया और माथे पर निशान लगाये।
योम-ए आशूरा पर ताजिया उठाकर किया मातम
